हसरतों की ख्वाइश
1 year ago
मैंने खुद को अभी पाया कहाँ
बात जो कहनी थी
दिल की
वो अभी तक लवों पर
लाया कहाँ
है जो ये चिर-परिचित शख्स
खुद के अन्दर
खुद को खुद से
मिलाया कहाँ
है नहीं ये आरजू
कि आसमान में
फैला के पंख मैं उडू
कैद से मुक्त हो जाऊँ
मैं हूँ बस इतना चाहता
सारी दौलत, सारी चाहत
और सब पर हुकूमत
ये नहीं मैं चाहता
साये में अपनों के जी लूँ
कुछ पल बेपरवाह
बस यही हूँ
मैं चाहता
9 comments:
good one!!!
कहते हैं कि अभिव्यक्ति एक ऐसा एहसास है जो कोई किसी रूप में करता है तो कोई किसी रूप में ......न जाने कितने चित्रकार हुए , लेखक, कवि, आजकल फिल्म निर्देशक या अभिनय करने वाले ....सबके अपने अपने तरीके हैं अभिव्यक्ति के ...लेकिन जरूरी नहीं हर कोई अभिव्यक्त कर सके खुद को .....
आपकी रचना निसंदेह ख़ास और जुदा है
achcha hai. waiting 4 a new post from you
keep ii up! very nice
sunil bhai engineer say poet ho gaya
tariki hai ya recession
बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना!
आप का ब्लाग बहुत अच्छा लगा।
मैं अपने तीनों ब्लाग पर हर रविवार को
ग़ज़ल,गीत डालता हूँ,जरूर देखें।मुझे पूरा यकीन
है कि आप को ये पसंद आयेंगे।
साये में अपनों के जी लूँ
कुछ पल बेपरवाह
बस यही हूँ
मैं चाहता
आपने बखूबी अपने सुंदर विचारों को शब्दों में पिरोया है....बधाई.....!!
क्या खूब लिखा है भाई साहब, दिल गार्डन गार्डन हो गया. नाम भी क्या खूब दिया है पागल की कलम. फर्क सिर्फ इतना है की आपने अपने दिल के भावः शब्दों में पिरो कर कविता लिखते हो और में इन्ही शब्दों से गुफ्तगू करता हूँ. आपका भी स्वागत है . www.gooftgu.blogspot.com
क्या खूब लिखा है भाई साहब, दिल गार्डन गार्डन हो गया. नाम भी क्या खूब दिया है पागल की कलम. फर्क सिर्फ इतना है की आपने अपने दिल के भावः शब्दों में पिरो कर कविता लिखते हो और में इन्ही शब्दों से गुफ्तगू करता हूँ. आपका भी स्वागत है . www.gooftgu.blogspot.com
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