लहू का रंग कैसा

अनिल कान्त का लिखा हुआ आप सभी के साथ बाँट रहा हूँ......बताइयेगा कि कैसा लगा


उठा है जो दर्द दिल में
तो खुद ही दबाया है मैंने

कहूं मैं अब क्या
आँसू की जगह आँखों से
लहू बहाया है मैंने

ना लो मेरे जख्मों का हिसाब
भर जाने पर
वो बहीखाता भी जलाया है मैंने